बिना पद के नियुक्त अध्यापक को सरकारी खजाने से वेतन भुगतान का नहीं दिया जा सकता : बिना पद के नियुक्ति पर पूर्णपीठ का फैसला

इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट की
तीन सदस्यीय पूर्णपीठ ने अपने महत्वपूर्ण
फैसले में कहा है कि यदि पद सृजित नहीं है
तो हाईकोर्ट अनुच्छेद 226 के तहत बिना
पद के कार्यरत कर्मचारी को वेतन भुगतान
करने का समादेश जारी नहीं कर सकता।

कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट कानून के
विपरीत कोई आदेश जारी नहीं कर
सकता। वेतन भुगतान के लिए अंतरिम या
अंतिम आदेश नहीं दिया जा सकता। कोर्ट
ने गोपाल दूबे केस में पूर्णपीठ के फैसले से
सहमति जताई है और कहा है कि ओम
प्रकाश वर्मा केस का फैसला कानून के
विपरीत है। कोर्ट ने कहा है कि वैधानिक
अधिकारों को लेकर ही कोर्ट समादेश
जारी कर सकता है।
यह फैसला मुख्य न्यायाधीश डॉ. डीवाई
चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति एसएन शुक्ला तथा
न्यायमूर्ति डीके अरोड़ा की पूर्णपीठ ने
उप्र राज्य मार्फत सचिव माध्यमिक
शिक्षा की विशेष अपील पर संदर्भित
विधि प्रश्न को निर्णीत करते हुए दिया
है। कोर्ट के समक्ष प्रश्न था कि क्या
बिना स्वीकृत पद के विद्यालय की प्रबंध
समिति द्वारा तदर्थ रूप से नियुक्त
अध्यापक को वेतन भुगतान किये जाने का
समादेश जारी किया जा सकता है।
धारा 9 वेतन संदाय अधिनियम के तहत
निदेशक की पूर्व अनुमति लिए बगैर किसी
संस्थान को पद सृजित करने का अधिकार
नहीं है। यदि नियुक्ति का अनुमोदन नहीं
हुआ है तो वेतन की वापसी करनी होगी।
इसलिए निदेशक के अनुमोदन के बगैर कोई पद
सृजित या स्वीकृत नहीं किया जा
सकता। बिना पद के नियुक्त अध्यापक को
सरकारी खजाने से वेतन भुगतान का आदेश
भी नहीं दिया जा सकता।
खबर साभार : डीएनए

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