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शिक्षामित्रों का केस हमारे केस से डिटैग हो जाना शिक्षामित्रों की बहुत बड़ी सफलता

शिक्षामित्रों का केस हमारे केस से डिटैग हो जाना शिक्षामित्रों की बहुत बड़ी सफलता है और समायोजन तथा याची राहत चाहने वालों की बड़ी हार। जो लोग याचियों के समायोजन की बातें कर रहे हैं
उनसे एक बड़ा सवाल यह है कि जब शिक्षामित्रों का केस से हमारे केस अलग सुना जाना है तो 72825 से अतिरिक्त सीटों का दावा वे कैसे करेंगे, ध्यान रहे कि याची समयोजन के लिये यह आवश्यक अतिरिक्त सीट 60 हजार से अधिक है और 72825 से भी अधिक हो सकती है।
..........अगर शिक्षामित्रों के केस के फाइनल होने से पहले हमारे केस पर बहंस होती है, वह भी शिक्षामित्रों के केस से अलग, और 72825 पर डिसीजन आता है तो किसी भी तरह का समायोजन या याची राहत असंभव है। यह बात समस्त याचियों के लिये बड़ा संकट है, क्योंकि सरकार ने याची राहत पाये 1100 में से जिनकी भी नियुक्ति हुई है उन्हें भर्ती में 72825 की गणना से बाहर भी रखा है। इसलिये उनकी तदर्थ नियुक्ति का भविष्य भी अचयनित याचियों के भविष्य के साथ काफी हद तक अवश्य जुड़ा है। शिक्षामित्रों के केस पर निर्णय से पहले (और वह भी शिक्षामित्रों के केस से अलग बहंस में) यदि बेस आफ सेलेक्शन पर निर्णय होता है..... और केवल 72825 भर्ती का फाइनल फार्मूले से करने का आदेश होता है, तो किस संवैधानिक आधार पर कुछ याचियों को नियुक्ति न देते हुए कुछ अन्य याची नियुक्ति को बरकरार रखा जा सकेगा.......... क्योंकि तब सभीं याचियों को राहत या समायोजन संभव नहीं होगा, और सिर्फ 72825 सीटें भरी जा रही होंगी। जैसा कि संभावना है, यदि मिश्रित फार्मूला आता है तो विशुद्ध टेट मेरिट और विशुद्ध एकेडमिक मेरिट मात्र से ही चयन की संभावना वाले बहुत से लोग बाहर होंगे जबकि वास्तविक 05 साल का संघर्ष ज्यादातर इन्हीं ने किया है और बहुत से ऐसे अभ्यर्थी अंदर होंगे जिनका इस संघर्ष में कोई योगदान नहीं। यह बात खासतौर से टेट मेरिट मात्र से ही चयन हो सकने वाले वर्तमान में तदर्थ नियुक्ति पाए उन आवेदकों को अवश्य सोंचनी चाहिये जो कि यह दिवास्वप्न देख रहे हैं कि चयन का फार्मूला नहीं बदलेगा।
शिक्षामित्रों का केस हमारे केस से अलग कर दिया है। इसलिये हम शिक्षामित्रों को हटाए जाने के हाईकोर्ट के आदेश और उसपर सुप्रीम कोर्ट के स्टे के कारण वर्तमान में जो सीटें रिक्त पड़ी हैं और शिक्षामित्रों पर फाइनल आर्डर के बिना नहीं भरी जा सकतीं, उन सीटों पर हम याची राहत की मांग कैसे करेंगे? और इस दशा में हाई कोर्ट से शिक्षामित्रों पर जीत का भी हमें कोई लाभ नहीं मिलेगा.
24 अगस्त की सुनवाई में सकारात्मक यह रहा कि माननीय न्यायमूर्ति जी आगे भी याचियों का समायोजन करने के पक्ष में थे, लेकिन यह खुशी यहीं समाप्त हो जाती है कि न्यायमूर्ति जी ने इन याचियों की नियुक्ति का आदेश नहीं दिया वरन् राज्य सरकार से इसका जवाब लगाने को कहा है कि इन याचियों को नियुक्ति देने में क्या समस्या है। 05 अक्टूबर को राज्य सरकार का जवाब हम सभीं जानते हैं कि 72825 सीटें भर चुकी हैं जिससे अब याची आधार पर राहत देना संभव नहीं है। अतः शिक्षामित्रों के रिक्त पदों पर याची राहत की मांग या तो केस को पुनः शिक्षामित्रों के केस के साथ टैग कराएगी या फिर शिक्षामित्रों के केस से अलग और पहले बेस आफ सेलेक्शन पर निर्णय हुआ तो याची किसी भी तरह की याची राहत नहीं मिलेगी।
---------- इसलिये वर्तमान् में किसी भी आधार पर कोई भी चयनित अपनी नियुक्त को बरकरार रखना चाहता है और कोई भी जो याची राहत या समायोजन पाना चाहता है उसे शिक्षामित्रों के केस पर सीनियर वकील करके उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने का पहला प्रयास करना चाहिये। शिक्षामित्रों पास जो भी वकील हैं वे इतने सक्षम हैं कि उनके केस को इतना लंबा खींच सकें कि उनपर निर्णय 72825 पर निर्णय के बाद हो और बीएड टेट पास की तरफ से जो भी वकील रहते हैं वे उन सीनियर वकीलों को इस डेट का खेल खेलने से रोकने में सक्षम नहीं हैं। जब शिक्षामित्रों का केस हमारे केस के साथ था तो उस दशा में यदि शिक्षा मित्रों का केस लम्बा खिंचता तो हमें उन रिक्त पदों पर याची राहत मिल जाती क्योंकि तब सरकार सीटें न होने का रोना नहीं रो सकती थी, क्योंकि शिक्षामित्रों के हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश् के बीच अभीं भी 48 हजार से भी अधिक रिक्त सीटें हैं जो बिना शिक्षामित्रों पर फाइनल आर्डर के शिक्षामित्रों द्वारा भरा जाना असंभव है। यदि 72825 के बाद शिक्षामित्र हटते हैं तो तब तक हमारा केस और हमारा मुद्दा दोनों समाप्त हों जायेंगे और हम उन सीटों पर कोई दावा नहीं कर पायेंगे. इसलिये याची राहत को पाने और बरकरार रखने दोनों के लिये जरूरी है कि या तो शिक्षामित्रों के केस पर हमारे केस से पहले निर्णय हो या फिर हमारा केस उस केस से जुड़ा रहे जिससे याची राहत की मांग स्वीकारना न्यायमूर्ति के लिये संभव हो। शुतुरमुर्ग पर जब मुसीबत आती है उसका पीछा किया जाता है तो पहले वह तेजी से भागता है और फिर रेत में मुँह छिपाकर सोंचता है कि मुसीबत टल गई है, लेकिन मुसीबत से मुँह छिपाने से टलती नहीं है। चूंकि अभीं शिक्षामित्रों का केस अलग किया जा चुका है इसलिये अब याची राहत के लिये शिक्षामित्रों के केस में हम सब को खुद सीनियर वकील खड़ा करना और अपने केस पर निर्णय आने से पहले उन्हें बाहर का रास्ता दिखाना आवश्यक हो गया है। इस विषय में क्या वास्तव में किया जा सकेगा यह आपमें से प्रत्येक के व्यक्तिगत निर्णय पर निर्भर होगा और आपको जो अन्तिम परिणाम मिलेगा वह आपके ही निर्णयों के कारण होगा। तो करना क्या है यह आप खुद के विचार से तय करें दूसरों की पोस्ट पढ़कर और बातें सुनकर नहीं, क्योंकि जल्द ही वह दिन आने वाला है जब आपको आपके निर्णय का अच्छा या बुरा परिणाम खुद भुगतना होगा।
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