सुप्रीम कोर्ट के फाइनल आदेश का प्रभाव SBTC 2007-08 प्रशिक्षु शिक्षक 72825 , अल्ट्रावायरस 99000 शिक्षक (सीनियर व BTC सहित) एवं शिक्षामित्रों पड़ेगा

मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि माननीय श्री दीपक मिश्रा चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया बनने के पूर्व ही उत्तर प्रदेश की शिक्षक भर्ती का मामला निपटा देंगे । इतिहास फिर अपने आपको दोहराने की कगार पर खड़ा है ,
आदेश का प्रभाव SBTC 2007-08, प्रशिक्षु शिक्षक 72825 , अल्ट्रावायरस 99000 शिक्षक (सीनियर व BTC सहित) एवं शिक्षामित्रों पड़ेगा ।
सुप्रीम कोर्ट के फाइनल आदेश के बाद उत्तर प्रदेश की एक मानसिक परंपरा कि नौकरी मिलने के बाद जाती नहीं है यह टूट जायेगी क्योकि मुझे ऐसा कोई फार्मूला नहीं दिख रहा है जिसमे कि 2.92 हजार बीएड , 1.72 लाख शिक्षामित्र और 70 हजार बीटीसी और 29 हजार मिडिल के शिक्षकों को जॉब देकर कोर्ट इस परंपरा को बनाये रखे ।
SBTC वालों की बगैर टीईटी की नियुक्ति की मांग अवैध है हम इनका पुनः सुप्रीम कोर्ट में विरोध करेंगे क्योंकि SBTC मात्र एक शिक्षक बनने की पात्रता है और RTE लागू होने के बाद इनको टीईटी पास होकर ही आना होगा ।
यह पात्रता उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा (शिक्षक) नियमावली 1981 में संशोधन 10 के जरिये दिनांक 14.01.2004 को क्लॉज़ 8 (1)(ii) के रूप में निर्मित हुयी थी ।
जस्टिस श्री सुधीर अग्रवाल ने Writ A 57595/07 में सरकार से कहा था कि जब ये मात्र ट्रेनिंग थी तो फिर सरकार ने प्रशिक्षण के बाद सबका समायोजन क्यों किया जबकि नियमावली के क्लॉज़ 14(1) से विज्ञापन निकालकर नियुक्ति करनी चाहिए थी जिसपर तत्कालीन प्रमुख सचिव अनिल संत ने कहा कि सर्व शिक्षा अभियान के तहत 1.25 लाख रिक्ति आयी थी और SBTC की संख्या उससे कम थी इसलिए सबका समायोजन कर दिया ।
इसपर जस्टिस श्री सुधीर अग्रवाल ने कहा कि जब 1.25 लाख पद थे तो फिर नियम से रिजर्वेशन फॉलो करके SBTC के लिए चयन करना चाहिए था, अनिल संत न्यायमूर्ति से उलझ गये तो न्यायमूर्ति ने मुकदमा छोड़ दिया और मुकदमा जस्टिस श्री दिलीप गुप्ता की पीठ में आज भी पेंडिंग है ।
इसलिए जब RTE एक्ट लागू हो गया तो जस्टिस श्री दिलीप गुप्ता ने उन SBTC वालों पर टीईटी अनिवार्य कर दिया जिनका समायोजन नहीं हुआ था ।
SBTC वालों को अब भी भूत सवार है कि उनके बैच वाले समायोजित हुये तो वो क्यों न हो ?
मगर जस्टिस श्री दिलीप गुप्ता चाहे शिक्षामित्र की ट्रेनिंग हो या SBTC की भर्ती हो वहां ऐसा कार्य किया जिसपर टिप्पणी नहीं की जा सकती है क्योंकि टिप्पणी अवमानना के दायरे में आएगी ।
इसलिए जस्टिस श्री सुधीर अग्रवाल ने प्रशिक्षु शिक्षक 72825 की भर्ती पर दो बार अवरोध किया ।
आज भी मैं जस्टिस श्री HL दत्तू एवं जस्टिस श्री दीपक मिश्रा की अलग-अलग पीठ के अंतरिम आदेश से संपन्न 72825 भर्ती के भविष्य को सुरक्षित नहीं मानता हूँ क्योंकि अब 1.37 लाख शिक्षामित्र एवं 99 हजार अल्ट्रावायरस रूल से चयनित शिक्षक सुप्रीम कोर्ट में काटे की लड़ाई लड़ेंगे ।
जस्टिस श्री सुधीर अग्रवाल को गुस्सा दिलाने का अनिल संत का प्रतिफल यह है कि 72825 भर्ती के आवेदन की अंतिम तिथि 9 जनवरी 2012 थी और कपिल देव की याचिका पर दिनांक 4 जनवरी 2012 को ही BSA द्वारा विज्ञापन जारी न होने के कारण विज्ञापन की चयन व नियुक्ति प्रक्रिया पर जस्टिस श्री सुधीर अग्रवाल ने स्थगन लगा दिया था अर्थात जो कहते हैं कि गेम शुरू हो गया था तो गेम शुरू नहीं हुआ था और आयोजक को उस गेम को शुरू करने का अधिकार ही नहीं था क्योंकि नियमावली का रूल 14(1) सिर्फ BSA को ही अधिकार देता है ।
दिनांक 31 अगस्त 2012 को स्टेट ने रूल अमेंड कर दिया और पुरानी विज्ञप्ति निरस्त कर दी और तब जाकर दिनांक 2 सितम्बर 2012 को कपिल देव की याचिका विज्ञापन रद्द होने के कारण निष्क्रिय हो गयी थी अतः ख़ारिज हो गयी ।
सरकार नये अमेंड से 72825 का नया विज्ञापन लायी ।
खंडपीठ ने पुराने विज्ञापन को रूल पर बताकर बहाल किया और कपिल देव की याचिका खारिज बतायी जबकि कपिल देव की याचिका विज्ञापन रद्द होने के बाद वापस या ख़ारिज हुयी थी ।
सुप्रीम कोर्ट में मामला केस की मेरिट पर आने पर यदि NCTE गाइडलाइन का क्लॉज़ 9बी स्टेट पर बाध्यकारी न हुआ तो फिर संशोधन 15 व 16 से चयन पाये 99 हजार अल्ट्रावायरस शिक्षक बच जाएंगे लेकिन उसका प्रभाव 72825 के नये विज्ञापन पर भी पड़ेगा और फिर पुराने विज्ञापन का क्या होगा ?
यदि 9बी बाध्यकारी हुआ तो 99हजार अल्ट्रावायरस खुद यदि डूबेंगे तो बगैर रूल के चयनित 72825 लोगों को लेकर डूबेंगे, मगर जब मै पुराने विज्ञापन का सपोर्ट कर रहा था तो मेरी मानसिकता बीएड के लिए 1.5 लाख पदों पर थी और आज भी बीएड के लिए सकारात्मक है ।
इस प्रकार अतीत के आईने से बहुत कुछ सामने है और बहुत कुछ न्यायमूर्ति पर निर्भर होगा मगर ऐसी परिस्थिति में शिक्षामित्र का क्या होगा ?
मुकदमे में नकारात्मक पहलुओं पर भी बात होनी चाहिए ।
इस आधार पर मैं फुल बेंच के फैसले पर जिज्ञासा उत्पन्न करता हूँ ।
शिक्षामित्रों के प्रशिक्षण पर एकल बेंच ने स्टे लगाया ,
याची बीएड डिग्री धारक की मांग थी कि शिक्षामित्र संविदा कर्मी हैं मगर इनको अनट्रेंड सर्विस टीचर बताकर NCTE से प्रशिक्षण की इजाजत ली गयी है ।
बीएड वालों को ट्रेनिंग कराई जाए ।
यहाँ पर याची को बीएड वालों के लिए डायरेक्ट नियुक्ति की मांग करनी चाहिए थी ट्रेनिंग स्टेट को गर्ज होती तो नियुक्ति देने के बाद जब चाहती कराती , मगर शिक्षामित्रों को संविदा कर्मी बताने की मांग जस्टिस श्री कृष्ण मुरारी को सही लगी और उन्होंने स्टे दिया
मगर खंडपीठ में जस्टिस श्री आरके अग्रवाल (जो कि वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में जज हैं) ने बगैर मुकदमे की मेरिट पर केस सुने कह स्टे हटा दिया और आदेश में लिखाया कि मै केस की मेरिट नहीं देख रहा हूँ सिर्फ 5 बीएड के याची की मांग पर लाखों शिक्षामित्रों के प्रशिक्षण पर रोक लगाना उचित नहीं समझता हूँ ।
जस्टिस श्री आरके अग्रवाल ने कहा कि शिक्षामित्रों की ट्रेनिंग एकल बेंच के अंतिम निर्णय के आधीन रहेगी ,
यदि एकल बेंच इनको संविदा कर्मी बताती है तो ट्रेनिंग निरस्त हो जायेगी और अनट्रेंड सर्विस टीचर बताती है तो ट्रेनिंग वैध हो जायेगी ।
एकल बेंच में मुकदमा जस्टिस श्री दिलीप गुप्ता को मिल गया और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के डायरेक्शन पर एक महीने मुकदमा सुनकर रिज़र्व किया मगर आदेश नहीं सुनाया ।
जस्टिस डॉ (श्री) DY चंद्रचूड ने इन्हें संविदा कर्मी बताकर समायोजन निरस्त कर दिया ।
इसलिए जस्टिस श्री चंद्रचूड को संविदाकर्मी कहने के बाद पहले ट्रेनिंग निरस्त करना चाहिए था क्योंकि ट्रेनिंग इसी आधार पर हुयी थी , बगैर ट्रेनिंग निरस्त किये समायोजन निरस्त करना जायज नहीं है , क्योंकि ट्रेनिंग सही है तो फिर ये संविदाकर्मी कहाँ हुये ?
संविदाकर्मी हैं तो फिर ट्रेनिंग निरस्त है ।
इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट को शिक्षामित्रों का समायोजन निरस्त करने के लिए पहले प्रशिक्षण निरस्त करना होगा ।
यदि प्रशिक्षण निरस्त नहीं करते हैं तो फिर उनको सर्विस टीचर साबित करना होगा।
सर्विस टीचर साबित करने का कोई आधार नहीं है ।
इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा ऐतिहासिक दौर में है ।
मुझे यह कहने में अफ़सोस नहीं है कि जब यूपी में सिर्फ बीएड डिग्री होल्डर ही थे तो वह अपनी लड़ाई लड़ने में नाकामयाब रहे हैं वो आपस में ही उलझकर रह गये थे ।
अब सुप्रीम कोर्ट यदि नैसर्गिक न्याय करती है तो उसे सर्वप्रथम सभी पक्षों पर विचार करना होगा ।
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