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इतना तो लोग आतंकवादियों के पीछे नहीं पड़ते जितना आज शिक्षकों के पीछे: सोचनीय विषय आखिर ऐसा क्यों??

इतना तो लोग आतंकवादियों के पीछे नहीं पड़ते जितना आज शिक्षकों के पीछे पड़े हैं। शिक्षक समय पर विद्यालय नहीं आता,आता है तो पढ़ाता नहीं,खाना अच्छा नहीं बनवाता,फल नहीं खिलाता, झाडू नहीं
लगाता,दीवार पर लोगों द्वारा थूकी गयी पीक साफ नहीं करता आदि आदि कान्वेंट स्कूलों से सरकारी स्कूलों की तुलना की जाती है कि वहाँ का बच्चा पढ़ने में तेज होता है।
मीडिया भी कमियाँ निकालता है तो केवल शिक्षकों की।कभी फर्जी स्टिंग ऑपरेशन के द्वारा तो कभी स्वयं संपादित चित्र द्वारा। सबसे पहले तो ये जान लें कि शिक्षक का काम केवल पढ़ाना होता है शेष काम वो दबाव में करता है। 4 रूपया 13 पैसे में भोजन कराता है। जाँच करने वाला केवल ये देखता है कि फलाने अध्यापक ने एम डी एम में 10 बच्चे ज्यादा चढ़ाये हैं उसे ये नहीं पता कि पिछले महीने कोटेदार ने जो 50 किलो का बोरा दिया था उसमें खाद्यान्न केवल 35 किलो था और तो और दो बोरी गेहूँ सड़ गया। कौन देगा इसका हिसाब?? एक शिक्षक ने बच्चे से झाडू क्या लगवा लिया सस्पेंड हो गया। बच्चे को पीट दिया सस्पेंड हो गया।पूरे भोजन में एक छोटा सा आवारा कीड़ा आ गया तो सस्पेंड हो गया। सर पर लटकती तलवार से अपनी गर्दन बचाते हुए किसी प्रकार दिन काटता है।सब कुछ से बचा तो बच्चों की संख्या कम क्यों है उसका जवाब दे।अरे भाई शिक्षक पर अपना शक्ति प्रदर्शन करके सुधार नहीं हो सकता।अगर सुधार करना है तो पावर का केन्द्र शिक्षक को बना दो।
गाँव के सफाईकर्मी को वेतन देने से पहले शिक्षक का प्रमाणपत्र अनिवार्य किया जाय कि उसने विद्यालय में महीने भर साफ सफाई किया है अथवा नहीं।
अभिभावक को किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ देने से पूर्व शिक्षक का प्रमाण पत्र अनिवार्य किया जाय किया उसके बच्चे नियमित रूप से विद्यालय आते हैं अथवा नहीं।
जनप्रतिनिधियों से कहा जाय कि वे शिक्षकों द्वारा बताई कमियों को अपनी निधि से दूर करें।
कान्वेंट से तुलना न करें और अगर करें तो गाँव के गरीब अभिभावकों को भी कान्वेंट में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों के बराबर करें,हर स्तर पर।
शिक्षकों को कनवेन्श की सुविधा उपलब्ध करायी जाये या फिर उन्हें आवास उपलब्ध कराये जाँय।
नहीं कर सकते तो उनका स्थानांतरण उनके गृह जनपद में कर दिया जाय।
मत भूलिए कि यही शिक्षक कभी प्राइवेट में पढ़ाया करता था । यही शिक्षक पीठासीन बनकर चुनाव जैसा महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न करवाता है ।जनगणना में सहयोग करता है।इतने महत्वपूर्ण कार्यों को निर्विघ्न सम्पन्न कराने वाले शिक्षक पर दोषारोपण उचित नही है।सच तो ये है कि दोष शिक्षक का नहीं व्यवस्था का है। बायोमीट्रिक और सीसीटीवी कैमरा भी लगवा दीजिए किन्तु पहले उसे राज्य कर्मचारी का दर्जा और सुविधाएँ दीजिए । पुरानी पेंशन बहाल कीजिए ताकि शिक्षक दुकान खोलने के लिए मजबूर नहीं हो।अंत में केवल इतना ही कहूँगा कि पानी जड़ में दीजिए,पत्तियों पर नहीं। थोथी दलीलों से काम नहीं चलता चार दिन गाँव के प्राइमरी में तीन कक्षाओं के बच्चों को एक साथ पढ़ाकर देखिए सब समझ में आ जायेगा ।
जय हिन्द जय शिक्षक
अरुण प्रताप सिंह ( स०अ०)
उ०प्रा०वि०कोडहरा नौबरार
मुरली छपरा (बलिया)
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