एक शिक्षक की पीड़ा और विवसता: शिक्षक के कपड़ों के सम्बन्ध मे जो आदेश निकाला गया है वो समझ से परे

शिक्षक के कपड़ों के सम्बन्ध मे जो आदेश निकाला गया है वो समझ से परे है। अगर शिक्षक एक संवेधानिक प्रक्रिया के तहत सरकारी जॉब पाता है तो उससे ये अपेक्षा रहती है कि वो शिक्षक होने के सारे गुण रखता है और शिक्षक होने की मर्यादा उसका विशेष गुण है।
फिर अलग से उसको मर्यादा के पाठ पढ़ाना अपनी ही चयन प्रक्रिया पर संदेह करना है। शिक्षक होने के नाते वो खुद इतना सक्षम है कि वो ये निर्णय कर सके कि वो किन कपड़ों मे मर्यादित रहेगा। वैसे भी कपड़ों से शिक्षण का कोई सम्बन्ध नही है ये सिर्फ मानसिक सोच है। कितने ही शिक्षक शालीन कपड़े पहनकर भी गांव के बच्चों को छूने से घृणा करते है। शिक्षक होने के नाते अगर शिक्षण मे वो कोई ढिलाई या कमी करता है तो ये आवशयक है कि उसके लिए कड़े नियम हो। शिक्षकों की लेटलतीफी रोकने के लिए नियम बनने चाहिए पर लेट होने पर वेतन काट देना जैसे दंड न्याय संगत नही है। अगर इसे सही मान लिया जाय तो क्या सरकार शिक्षकों के वेतन के 1 दिन भी लेट हो जाने पर शासन और प्रशासन के लिए भी कोई दंड का प्राविधान होगा ??? क्या लेट होने के एवज मे कोई धन प्रतिदिन के हिसाब से दिया जायेगा ?? अगर ऐसा है तो सही है कोई दिक्कत नही है। शासन का पूरा जोर शिक्षा के उन्नयन और शिक्षा की गुणवत्ता पर होना चाहिए न कि शिक्षक पर बेसिर पैर के नियम लादने पर। आज भी ये एक सत्य है कि बेसिक शिक्षा मे कार्यरत अधिकतर शिक्षक पूरे मनोयोग से अपने कार्य करते है। अगर कोई समस्या भी होती है तो वो शासन और प्रशासन के स्तर पर ही होती है क्योकि शिक्षक से आजकल शिक्षण के अलावा सब कुछ करवाया जा रहा है।
शासन को पहला काम ये करना चाहिए कि शिक्षक को सभी प्रकार के शिक्षणेत्तर कार्यों से मुक्त कर देना चाहिए। पर ये कोई सरकार नही करेगी क्योकिं आधारभूत ढांचा इतना कठिन है कि सिर्फ बेसिक शिक्षक ही यहां रहकर कार्य कर सकता है न ही कोई मंत्री न कोई सरकार। इसी बात से समझा जा सकता है कि बेसिक शिक्षक को किन मुख्य समस्याओं से जूझना पड़ता है।

दूसरी बात शिक्षको से जुड़े आर्थिक पक्ष सम्बंधित चिंताओं को प्राथमिकता के आधार पर हल किया जाना चाहिए पर ये भी नही हो सकता क्योकिं जब तक शिक्षक का वेतन रोका नही जायेगा तो बाद मे एरियर कैसे बनेगा और बसूली कैसे होगी। अतः ये भी सरकार नही कर सकती।
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात शिक्षक को कर्मचारी या नोकर मानने की मानसिकता से मुक्त होने की जरूरत है क्योकिं अधिकतर अधिकारी उनसे कर्मचारी की तरह व्यवहार करता है न कि शिक्षक की तरह। जब तक शिक्षक को शिक्षक नही समझा जायेगा तब तक सुधार संभव नही है।
चौथी बात, सरकार को चाहिए की कुकरमुत्तों की तरह उग आये स्कूलों पर लगाम लगाये। 2 कमरों मे पूरा इंटर कॉलेज चलता है और शायद एक पेड़ के नीचे एक मांटेसरी स्कूल। ये स्कूल बेसिक मानकों को पूरा भी नही करते। पर ऐसे स्कूलों की भरमार है। इन्हें रोकने की जरूरत है वरना ये शैक्षिक वातावरण को दूषित ही नही बर्बाद कर देंगे।
प्राइमरी स्कूलों मे शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए उसे कदमों की जरूरत है जो जमीन पर लागूं हो। खानापूर्ति बन्द होनी चाहिए। शिक्षक भी शिक्षण जब ही कर सकता है जब उसको यथोचित सम्मान मिले।
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