शिक्षामित्रों को आज मिल सकती है बड़ी खुशखबरी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में जेठमलानी रखेंगे तर्क

लखनऊ. शिक्षामित्रों आज कोई बड़ी खुशखबरी मिल सकती है। क्योंकि इस दिन सुप्रीम कोर्ट में इनकी पैरवी देश के जाने-माने वकील राम जेठमलानी करेंगे। संयुक्त सक्रिय शिक्षक-शिक्षा मित्रों की प्रांतीय बैठक में सुप्रीम कोर्ट में 17 मई को होने वाली सुनवाई के दौरान देश के वरिष्ठ अधिवक्ता को खड़ा करने का फैसला लिया गया है।


समिति के संरक्षक दुष्यंत चौहान ने बताया कि देश वरिष्ठ अधिवक्ता रामजेठ मलानी, जगदीप धनगढ़, महालक्ष्मी पवनी, मोहन पाराशरन, चंद्रोदय सिंह, जयंत भूषण व वी गिरी उनके संगठन की ओर से शिक्षा मित्रों के लिए पैरवी करेंगे। समिति के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में 17 मई को फाइनल सुनवाई होनी है। यह सुनवाई स्पेशल बेंच करेगी। उम्मीद है कि इस दिन शिक्षा मित्रों के लिए खुशखबरी आ सकती है। साथ ही उम्मीद है कि यह कोर्ट का फाइनल डिसीजन हो जाएगा।


2011 के बाद शुरू हुआ भर्ती पर विवाद
शिक्षा मित्रों के मामले में सुप्रीम कोर्ट में पहले सुनवाई की तिथि 11 जुलाई तय थी। इसी बीच प्रदेश सरकार ने आशीष गोयल को हटाया। उन पर आरोप था कि वह शेष बचे तीसरे बैच के शिक्षा मित्रों के समायोजन में दिलचस्पी नहीं ले रहे थे। उड़ती-उड़ती आई इस खबर ने प्रदेश में सहायक अध्यापक पद पर समायोजित हो चुके करीब सवा लाख शिक्षा मित्रों को हटाकर टीईटीधारी अभ्यर्थियों को नियुक्ति देने की लड़ाई लड़ रहे लोगों को बल दे दिया। इसके खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई और सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। इस तर्क के साथ कि पुरानी नियुक्तियों पर फैसला आना बाकी है और सरकार नए लोगों को समायोजित करने जा रही है। सुप्रीम कोर्ट में 9 मई को 12029 लोगों के समायोजन की सुनवाई होनी थी। इसकी डेट 26 अप्रैल लगी थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की स्पेशल बेंच बनाकर सभी मामले एक साथ मर्ज करके सुनने का निर्णय लिया। इसकी नोटिस शिक्षा मित्र एसोसिएशन के सदस्यों को मिलनी शुरू हुई तो वे सन्नाटे में आ गए। आनन. फानन में सोमवार को वे दिल्ली मूव कर गए।
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नियुक्तियां असंवैधानिक
इससे पहले सुनवाई के दौरान जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की बेंच ने कहा कि शिक्षामित्रों की नियुक्तियां असंवैधानिक हैं क्योंकि आपने बाजार में मौजूद प्रतिभा को मौका नहीं दिया और उन्हें अनुबंध पर भर्ती करने के बाद उनसे कहा कि आप अनिवार्य शिक्षा हासिल कर लो। कोर्ट ने कहा कि 6 माह के भीतर नई भर्ती कीजिए। तब तक शिक्षामित्रों को शिक्षण कार्य करने दीजिए। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि शिक्षामित्रों की इस भर्ती में बैठने का पूरा अधिकार होगाए उनके लिए उम्र सीमा का कोई बंधन नहीं होगाए क्योंकि वह पहले से पढ़ा रहे हैं। वहीं यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाए जाने का बचाव किया। सरकार ने कहा कि दूर.दराज के इलाकों में रह रहे बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के तौर पर नियुक्त किया गया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिक्षामित्रों की नियुक्तियां असंवैधानिक हैं।
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1 लाख 35 हजार शिक्षामित्रों का हो चुका है समायोजन
मालूम हो कि यूपी सरकार ने करीब 1 लाख 35 हजार शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षकों के तौर पर समायोजन किया है, जबकि करीब 35 हजार सहायक शिक्षकों की नियुक्ति अभी होनी हैए लेकिन फिलहाल वह रुकी हुई है। इनकी नियुक्ति बिना टीईटी परीक्षा के ग्राम पंचायत स्तर पर मेरिट के आधार पर की गई थी। 2009 में तत्कालीन बसपा सरकार ने इनके दो वर्षीय प्रशिक्षण की अनुमति नेशनल काउंसिल फॉर टीचर्स एजुकेशन (एनसीटीई) से ली। इसी अनुमति के आधार पर इन्हें दूरस्थ शिक्षा के अंतर्गत दो वर्ष का बीटीसी प्रशिक्षण दिया गया।

नियुक्तियां कर दी थीं रद्द
2012 में सत्ता में आई सपा सरकार ने इन्हें सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करने का निर्णय लिया। पहले चरण में जून 2014 में 58,800 शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक के पद पर समायोजन हो गया। दूसरे चरण में जून में 2015 में 73,000 शिक्षामित्र सहायक अध्यापक बना दिए गए। तीसरे चरण का समायोजन होने से पहले ही हाईकोर्ट ने सितंबर 2015 में शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त करने के खिलाफ फैसला दिया था और सभी नियुक्तियां रद्द कर दी थीं। फिलहाल इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रखी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर यूपी सरकार के साथ ही केंद्र सरकार की भी नजरें टिकीं हुई हैं। वहीं शिक्षामित्रों में शीर्ष कोर्ट के फैसले को लेकर इंतजार है।
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