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संवैधानिक व्यवस्था के ओट मे देश के युवाओं का शोषण: उ०प्र०शिक्षामित्र प्रकरण

संवैधानिक व्यवस्था के ओट मे देश के युवाओं का शोषण : उ०प्र०शिक्षामित्र प्रकरण
वर्तमान समय में उ०प्र० के प्राथमिक विद्यालय मे विगत 17 वर्षों से कार्यरत शिक्षामित्रों के भविष्य को सुप्रिम कोर्ट के अतर्कसंगत फैसले ने अधर मे डाल दिया।

    माननीय न्यायालय के फैसले का अध्ययन करने वाले अधिवक्तागण भी तारतम्य स्थापित नही कर पा रहे हैं।
     मु०न० 4347/14 मे सम्बद्ध मामले(72825 ,15वां संशोधन तथा शिक्षामित्र समायोजन) मे न्यायालय ने निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर निर्णय दिया।

1-72825 शिक्षक भर्ती मे न्यायालय ने चयन के आधार(टेट मेरिट) को निरस्त करता है परन्तु इस आधार पर चयनित 66655 शिक्षको के नियुक्ति को बरकरार रहने देता है और शेष बचे हुये पदों पर एकैडमिक मेरिट के आधार पर चयन का निर्देश देता है।

2- 15वें संशोधन को सही मानते हुये इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज किया।

3- न्यायालय द्वारा शिक्षामित्र समायोजन पर उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध शिक्षामित्रों के द्वारा दायर याचिकाओं पर शिक्षामित्रों के जवाब की अनदेखी करने के साथ ही उठाये गये कानूनी प्रश्नों (question of law ) का कोई समाधान  नही किया गया अपितु राज्य सरकार  के याचिका पर निर्णय देते हुये राज्य सरकार द्वारा किया गया समायोजन निरस्त कर दिया परन्तु न्याय की भावना के विपरीत बिना अपराध बताये ही 172000 परिवार को बेसहारा कर दिया।

4-याची लाभ के अन्तर्गत अंतरिम नियुक्ति पाये हुये 839 अभ्यर्थियों की नियुक्ति मे न्यायालय द्वारा चयन के आधार तथा आरक्षण के नियम की अवहेलना किया गया है।

     शिक्षामित्र समायोजन के विषय मे निर्णय करते समय न्यायालय द्वारा "कर्नाटक राज्य / उमा देवी मामले का उद्हरण दिया जाता है ।
     उमादेवी मामले का अध्ययन  करने पर मुझे ऐसा लगा कि न्यायालय केस के पैरा 43 का तो अध्ययन करती है और शिक्षामित्र नियुक्ति को 1981 के बेसिक शिक्षा नियमावली मे तलाशती है।जब कि शिक्षा मित्र की नियुक्ति 73वें संविधान संशोधन द्वारा हुआ है,यह भूल जाता है और उमादेवी केस के पैरा53 को अनदेखा करता है।

     कैसी विडंबना  है 72825 के नियुक्ति में न्यायालय चयन के आधार (टेट मेरिट ) निरस्त करता है परन्तु चयनित लोगों को सुरक्षित छोण दिया।
        839 लोगों को नौकरी देने के लिए न्यायालय द्वारा नियम के बजाय न्यायालय में याचना को आधार बनाया गया।
     शिक्षामित्र समायोजन को निरस्त कर के माननीय न्यायालय द्वारा संवैधानिक संस्थाओं द्वारा अपने नागरिकों के शोषण का अधिकार पर स्वीकृति माना जाय?    
    लेख को न्यायालय का अवमानना  न माना जाय।

      विजय मिश्रा
       S S T
9453152793
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