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1.72 लाख शिक्षामित्रों का भविष्य खतरे में , शिक्षामित्रों और उनके वकीलों की दलील

शिक्षामित्रों और उनके वकीलों की दलील
शिक्षामित्रों का कहना है कि उनकी नियुक्ति शिक्षामित्र के रूप में नहीं बल्कि सहायक शिक्षकों के रूप में हुई है।
उनके वकीलों का कहना था कि राज्य में शिक्षकों की कमी को ध्यान में रखते हुए एक स्कीम के तहत शिक्षामित्रों के रूप में पहले उनकी नियुक्ति हुई थी, जो बाद में सहायक शिक्षक के रूप में हुई। उनके वकीलों का कहना उनकी नियुक्ति पिछले दरवाजे से नहीं हुई थी। शिक्षामित्र पढ़ाना जानते हैं, उनके पास अनुभव है और वे वर्षों से पढ़ा रहे हैं। उम्र के इस पड़ाव पर उनके साथ मानवीय रवैया अपनाया जाना चाहिए।

लाखों-हजारों परिवारों का भी संकट
शिक्षामित्रों के इस संकट के कई पहलू है, जिन पर सरकार को समय रहते ध्यान देना चाहिये। दरअसल देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्रों के रूप में यह संकट केवल 1.72 लाख लोगों का नहीं है, बल्कि उन परिवारों का भी है, जिनका पालन-पोषण इन शिक्षामित्रों के वेतन से होता है। शिक्षामित्रों की एक बड़ी और गंभीर समस्या यह भी है कि जिन शिक्षामित्रों के भविष्य पर यह संकट खड़ा हुआ है उनमें से कई की उम्र 50-55 वर्ष की हो चुकी है। उम्र के इस पड़ाव पर किसी भी व्यक्ति का रोजगार खतरे में पड़ना एक बड़ी समस्या है। इस उम्र में पेशे को बदलना भी लगभग असंभव सा होता है। इन तथ्यों को ध्यान में रखकर मानवीय दृष्टिकोण से भी इस समस्या को सरकार सुलझा सकती है।
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