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मूल स्कूल में जाने के लिए शिक्षामित्र परेशान, मूल विद्यालय में समायोजित किए जाने की लगाई गुहार

परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में सहायक अध्यापक पद पर समायोजन निरस्त होने के बाद शिक्षामित्र अपने मूल
स्कूल में जाने के लिए परेशान हैं। 25 जुलाई के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले तकरीबन 40 हजार रुपये वेतन ले रहे 1.37 लाख शिक्षामित्रों का मानदेय सरकार ने 10 हजार रुपये कर दिया है।
ऐसे में इनके लिए अपने घर से 70 से 100 किमी दूर समायोजित विद्यालय में आने-जाने पर पड़ने वाला खर्च उठाना मुश्किल हो गया है। यही कारण है कि ये शिक्षामित्र अपने मूल विद्यालय जाना चाहते हैं जो कि उनके गांव में ही हैं। सरकार ने समायोजन रदद् करते हुए मूल पद पर नियोजित करने की राजाज्ञा तो जारी कर दी लेकिन मूल विद्यालय में भेजने का आदेश जारी नहीं हुआ है।
100 किमी दूर तक पढ़ाने जा रहे शिक्षामित्र : अमर सिंह विकास खंड हंडिया से कोरांव के प्राथमिक विद्यालय लतीफ पुर में समायोजित हैं। इनके घर से विद्यालय की दूरी लगभग 106 किलोमीटर है। यदि अपने वाहन से जाये तो प्रतिदिन 200 से 300 रूपये का खर्च आता है। बच्चे बड़े हो गए है उनकी पढ़ाई मात्र 10000 में परिवार चलाना मुश्किल होता जा रहा है। इसी तरह जसरा के दशरथ भारती का समायोजन कोरांव के प्राथमिक विद्यालय रतयोरा साजी में हुआ है। इनके घर से स्कूल की दूरी 70 किमी है। प्रतिदिन मोटर साईकिल से आने जाने में 200 रूपये का पेट्रोल लग जाता। कमल सिंह प्राथमिक विद्यालय घुरमुट्ठी जसरा से प्रथमिक विद्यालय हड़ाही कोरांव में समायोजित है। इनकी भी दूरी 68 किमी है। संतोष बाबू पाल सल्लाह पुर कौड़िहार द्वितीय से धनूपुर के मसादि में समायोजित है। इनकी भी दूरी 70 किमी है। ऐसे में सवाल है कि शिक्षामित्र यदि प्रतिदिन 200 से 300 रुपये आने-जाने पर ही खर्च कर देंगे तो घर कैसे चलेगा।
शिक्षामित्र का मूल पद उनके मूल विद्यालय में है। अतएव तत्काल 150 से 200 किमी रन करने वाले शिक्षामित्रों को उनके नजदीक भेजा जाए। शिक्षामित्रों का मानदेय भी अध्यापकों की भांति प्रत्येक माह एक साथ भेजा जाए। -वसीम अहमद, जिलाध्यक्ष प्राथमिक शिक्षामित्र संघशिक्षामित्रों ने सचिव से लगाई गुहारआदर्श समायोजित शिक्षामित्र वेलफेयर एसोसिएशन ने कार्यालय सचिव बेसिक शिक्षा परिषद में ज्ञापन देकर मूल विद्यालय में समायोजित किए जाने की गुहार लगाई है। जिलाध्यक्ष अश्वनी कुमार त्रिपाठी, मंडलीय मंत्री शारदा प्रसाद शुक्ल आदि का कहना है कि मूल विद्यालय में नहीं भेजने के कारण शिक्षामित्रों को संकट का सामना करना पड़ रहा है।

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